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जीएसटी एवं उपभोक्ताओं पर इसका प्रभाव

सूरज जायसवाल

  • 4 August 2017
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  • क्या है जीएसटी

सरकार राजस्व उगाही के लिए अनेक प्रकार के कर लगाती हैं l आमतौर पर इन सारे करों को दो वर्गो में बाँटा जा सकता हैं - प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर l जहां प्रत्यक्ष कर मुख्यतौर पर आय एवं सम्पति में लगाया जाता हैं, जैसे - आयकर, कंपनी कर, सम्पति कर; वही अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं एवं सेवाओं के खरीद-बिक्री पर लगाया जाता हैं l उदाहरण के तौर पर - विदेशों से लाये जाने वाली सामानों पर आयात शुल्क, व्यवसायिक इकाइयों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं पर सेवा कर, औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन पर ऐक्साइज या उत्पाद शुल्क, इत्यादि I भारत में 1 जुलाई 2017 से केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले लगभग सारे अप्रत्यक्ष करों को हटाकर उनकी जगह में सिर्फ एक ही कर लगेगा जिसे जीएसटी (GST या Goods and Services Tax या वस्तु एवं सेवा कर) का नाम दिया गया है |

जीएसटी की मुख्य रूप से दो विशेषताएं हैं - पहली तो ये कि जहाँ पहले एक ही वस्तु/सेवा के ऊपर एक से ज्यादा अप्रत्यक्ष कर लगते थे, अब एक वस्तु/सेवा पर सिर्फ एक ही अप्रत्यक्ष कर यानि जीएसटी लगेगा; दूसरी यह कि जहाँ पहले अलग अलग राज्य में करों की दर अलग अलग होती थी, अब सभी राज्यों में एक वस्तु/सेवा पर लगने वाली जीएसटी की दर समान होगी l हालाँकि यह गौरतलब है कि कुछ व्यापारिक क्रियाकलापों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया हैं, जैसे - पेट्रोलियम, शराब, जमीन एवं भवन l साथ ही स्थानीय निकायों, जैसे नगर निगम एवं ग्राम पंचायतो, द्वारा लगाए जाने वाले करों को भी जीएसटी से बाहर रखा गया हैं, अर्थात ये सारे कर पहले की भांति जारी रहेंगे l ऐसे कुछ अपवादों को छोड़कर केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले सारे अप्रत्यक्ष करों को अब जीएसटी से प्रतिस्थापित किया जा रहा हैं l

जीएसटी के लागू होने से मुख्यत तीन वर्गों को सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा - सरकार, व्यवसायी एवं उपभोक्ता l यह लेख जीएसटी के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करता है तथा उपभोक्ता की दृष्टि से जीएसटी के प्रभावों का विश्लेषण करता है l

  • जीएसटी एवं पिछली कर प्रणाली - एक तुलना

कोई भी वस्तु उपभोक्ता के पास पहुंचने से पहले उत्पादन एवं वितरण के अनेक चरणों से गुजरता हैं, जैसे - निर्माता से थोक विक्रेता, थोक विक्रेता से खुदरा विक्रेता l वर्तमान जीएसटी प्रणाली के पूर्व, ऐसे हरेक चरणों में हुए सौदों पर एक या एक से ज्यादा अप्रत्यक्ष कर लगाया जाता था l उदाहरण के तौर पर - भारत में निर्मित एक टीवी सेट पर कारखाना से निकलते वक्त उत्पाद या ऐक्साइज शुल्क, अगर इसमें कुछ विदेशों से आयत किये गए कल-पुरजे लगे हैं तो उन पर सीमा या आयत शुल्क, फिर थोक विक्रेता से खुदरा विक्रेता के बीच बिक्री शुल्क, और आखिरकार खुदरा विक्रेता से उपभोक्ता के बीच वैट (VAT) l अन्तर्राजीय व्यापार की स्थिति में तो कर-प्रणाली और भी पेचीदा हो जाती थी, क्योंकि ऐसे व्यावसायिक समझौते जिसमें दो अलग अलग राज्यों के व्यापारी हिस्सा लेते हैं, उन पर एक केंद्रीय बिक्री शुल्क (Central Sales Tax) भी लगता था l साथ ही, चूंकि वैट राज्य सरकारों के द्वारा लगाया जाता था इसीलिए कई बार एक राज्य में वैट दर दूसरे राज्य के वैट दर से अलग था l इस प्रकार एक ही वस्तु/सेवा पर भिन्न भिन्न कर एवं राज्य-दर-राज्य अलग दरों पर लगने वाले करों की वजह से अप्रत्यक्ष कर प्रणाली काफी जटिल हो गयी थी l इस मुश्किल व्यवस्था की वजह से अलग अलग समस्याएं उत्पन्न हुई l जैसे - जहां एक तरफ ईमानदार करदाता को कर का हिसाब करने एवं चुकाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, वही कर चोरी करने वाले इस जटिल व्यवस्था का नाजायज फायदा उठाकर कर बचाने में सफल हो जाते थे l साथ ही साथ, चूंकि एक ही वस्तु/सेवा पर अनेक प्रकार के कर लगते थे, इसकी वजह से उस वस्तु/सेवा का मूल्य बढ़ जाता था l नीचे दिया गया चित्र इस परिस्थिति को स्पष्ट करता हैं -

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ऊपर दिए गए चित्रानुसार, A एक थोक विक्रेता है, B एक खुदरा व्यापारी एवं C एक ग्राहक l C जब B से सामान खरीदता है तो उसे 130रु. पर 20% के दर से कर का भुगतान करना पड़ता है l हालाँकि ये गौरतलब है की 130रु. का बिक्री मूल्य 110रु. लागत एवं 20रु. मुनाफा से बना है, पर 110रु. के लागत में पहले से 10रु. का कर सम्मिलित है l फलस्वरूप, ग्राहक को न सिर्फ वस्तु के लागत (100रु. + 20रु. ) पर कर देना होता था , बल्कि पहले दिया गया कर (10रु.) और कर पे भी कर (10रु. पे 20%= 2रु.) देना पड़ता था l इस वजह से ग्राहक द्वारा चुकाए जाने वाले मूल्य में वृद्धि हो जाती थी l

जीएसटी के लागू होने से, अब एक वस्तु/सेवा पर सिर्फ एक ही कर लगेगा और इसकी दर सारे राज्यों में समान होगी l साथ ही निर्माताओं एवं व्यापारियों के लिए एक विशेष प्रावधान भी हैं जिसे इनपुट टैक्स क्रेडिट या आईटीसी (Input Tax Credit or ITC) का नाम दिया गया है l अगर हम ऊपर दिए गए चित्र का उदाहरण ले, तो जब A 10रु. कर राजकीय कोष जमा करा देगा तो उसे ख़रीददार यानि कि B का जीएसटी नंबर भी देना होगा l एक बार जब यह राशि सरकारी रिकॉर्ड में शामिल हो गयी तो B को 10रु. का टैक्स क्रेडिट मिल जायेगा l अंततः जब B उस वस्तु को C को बेचेगा तो 130रु. पर 10% (क्योंकि अब जीएसटी दर समान होगी) के हिसाब से 13रु. कर सरकार को देना होगा l चूंकि B के जीएसटी खाते में पहले से 10रु. मौजूद हैं  टैक्स क्रेडिट की वजह से, तो B को अब सिर्फ 3रु. अतिरिक्त ही जमा करने होंगे l इस तरह आईटीसी की वजह से वस्तु/सेवा में लगने वाले कुल कर में कमी आएगी l

  • जीएसटी का उपभोक्ताओं पर प्रभाव

उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली मूल्य को जीएसटी दो अलग अलग तरीको से प्रभावित कर सकता हैं l पहली तो कर के दरों में बदलाव की वजह से, और दूसरी उत्पादन एवं वितरण प्रणाली में बदलाव लाके l कर दर में परिवर्तन तो तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है, हालाँकि उत्पादन एवं वितरण प्रणाली में परिवर्तन के प्रभाव दिखने में थोड़ा समय लगेगा l आगे की पंक्तियों में इन दोनों संभावित बदलावों के बारे में विस्तार पूर्वक विश्लेषण किया गया हैं l

जीएसटी के अन्तर्गत, एक वस्तु या सेवा पर निम्न चार में से कोई एक दर लगेगी - 5, 12, 18 या 28%; या फिर उसे  अप्रत्यक्ष कर से मुक्त किया जा सकता है, अर्थात, उसे पर 0% कर लगेगा l किसी एक विशेष वस्तु/सेवा का मूल्य बढ़ेगा या घटेगा, यह इस बात पर निर्भर करता हैं कि उस वस्तु/सेवा पर लागू होने वाला जीएसटी की दर, पहले की दर से ज्यादा हैं या कम l उदाहरण की तौर पर - मान लीजिये कि एक वस्तु उपभोक्ता तक तीन चरणों में पहुँचता है - निर्माता से वितरक, वितरक से खुदरा व्यापारी एवं खुदरा व्यापारी से उपभोक्ता l इस वस्तु पर पहले निम्न करें लगती थी - उत्पाद या ऐक्साइज कर, राज्य प्रवेश कर, बिक्री कर, वैट, इत्यादि l मान लीजिये इन सारे करों का प्रभावी योग 15% था l अब अगर इस वस्तु को जीएसटी की अंतर्गत 18% की दर वाली सूची में रखा गया तो मूल्य में वृद्धि होगी; हालाँकि, अगर इसे 5 या 12% वाली सूची से रखा गया तो मूल्य में गिरावट होगी l यहाँ ये गौरतलब है कि चूंकि पहले अलग अलग राज्यों में कुछ दरे अलग अलग थी, तो ये संभव हैं ही एक ही वस्तु/सेवा का मूल्य जहां एक राज्य में पहले की तुलना में कम हो जाये वही दूसरे राज्य में बढ़ जाये l

जीएसटी के अन्तर्गत, अनाज, दाल, फल, सब्जियां, दूध, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं को कर के दायरे से बहार रखा गया है, अर्थात उन पर 0% कर लगेगा l ये सारे चीजें एक आम परिवार की औसतन मासिक खर्चे की 40-45% हिस्सा बनाते है l इसके अलावा दूसरे रोजमर्रा की चीजें जैसे चीनी, कॉफी, खाने का तेल, कोयला इन सब को 5% कर वाली सूची में रखा गया है, हालाँकि ज्यादातर सेवाओं पर 18% जीएसटी लगाया गया है जो पहले की 14-15% दर से कही ज्यादा हैं l जैसे की ऊपर बताया गया, एक ही वस्तु पे अलग अलग चरणों में अलग अलग कर अलग अलग दरों से लगते थे, इसकी वजह से ये अनुमान लगा पाना की पहले के सारे करो का टोटल कितना होता था और फिर उसे जीएसटी की दरों से तुलना करना जटिल काम हैं, हालाँकि कुछ अर्थशास्त्रियों का आंकलन है कि लगभग 50% चीजों में लगने वाले कर पहले जितने ही होंगे, लगभग 30% में कमी हो सकती है जबकि शेष 20% में कुल कर भार बढ़ने की संभावना है l

नए कर दरों के अलावा, इनपुट टैक्स क्रेडिट या आईटीसी की वजह से भी एक वस्तु/सेवा पर लगने वाले कुल कर में कमी आएगी l जैसा की ऊपर बताया गया, आईटीसी का उपयोग करके निर्माता, वितरक, व्यापारी अपने कुल कर अदायगी की रकम को कम कर सकते हैं, फलस्वरूप कुल लागत में भी कमी आएगी l इस लागत में कमी से यह उम्मीद है कि ग्राहक या उपभोक्ता द्वारा चुकाई जाने वाली मूल्य में भी कमी आएगी l सरकार ने इसके लिए जीएसटी ऐक्ट में एक प्रावधान जोड़ा है जिसके अनुसार निर्माता, वितरक एवं व्यापारिओं के लिए जीएसटी लागू होने की बाद हुई लागत में कमी की हिसाब से मूल्य में कमी करना अनिवार्य किया गया हैं l

ऊपर हमने देखा कि जीएसटी के लागू होने के बाद किन किन तरीको से मूल्य घट या बढ़ सकते है l हालाँकि, कुछ अर्थशास्त्रियो के अनुसार जीएसटी के पश्चात मुदास्फीति में बढ़ोतरी की संभावना है l इस बढ़ोतरी के अनुमान के पीछे दो तर्क हो सकते है l पहली तो यह कि दूसरे देशों में जहां जीएसटी लागू किया गया था, वहाँ मुदास्फीति में वृद्धि देखने को मिली थी, और दूसरी वजह ये के जीएसटी के सारे नियमों के अनुपालन करने से कुछ कंपनियों के लागत में इजाफा हो सकता हैं l इस तरह से लागत बढ़ने का मुख्य कारण यह है की भारत में बहुत ही बड़ी संख्या में कंपनियां, खासकर छोटी एवं मंझली श्रेणी की कंपनियां, अनौपचारिक तौर पर संचालन करती है l इसका मोटे तौर पर मतलब ये हुआ कि ये कंपनियां सरकारी नियमों का पालन नहीं करती है और कर भी नहीं चुकाती हैं l हालाँकि, जीएसटी के अंतर्गत इनपुट टैक्स क्रेडिट या आईटीसी प्रावधान का लाभ उठाने के लिए ये आवश्यक है कि निर्माता या व्यापारी सिर्फ उन्हीं  निर्माता या व्यापारी से सामान या सेवा खरीदे जो जीएसटी में रजिस्टर्ड है एवं सारे कर चुकाए हुए है l इस प्रावधान की वजह से इस बात की गहरी संभवना हैं कि अब तक जो निर्माता एवं व्यापारी नियमों का पालन नहीं कर रहे थे एवं कर भी नहीं चुका रहे थे उन्हें अब दोनों ही चीजें करनी पड़ेगी, और इससे कुल लागत बढ़ने की संभवना है l

आख़िरकार, जीएसटी का एक सकारात्मक प्रभाव वस्तुओं कि आपूर्ति प्रणाली पर भी पड़ेगा, खासकर दो राज्यों के बीच होने वाले वस्तुओं के आवागमन पर l हम सभी ने राज्य सीमा पर लगे हुए चेक पोस्ट के पास ट्रकों की लम्बी कतार तो देखा ही होगा, पर चूंकि जीएसटी के लागू होने के बाद सारे राज्यों में अब कर दर समान होगी, ऐसे चेक पोस्ट की ज़रुरत नहीं होगी l अंतिम समाचार मिलने तक, 22 राज्य ये घोषणा कर चुके है कि वो चेक पोस्ट हटा रहे हैं l इसके फलस्वरूप वस्तुओं के परिवहन लागत में गिरावट एवं समय की बचत होने की उम्मीद हैं l

  • उपसंहार

जीएसटी स्वतंत्र भारत में किये गए बड़े कर सुधारो में एक है और इस बात की प्रबल संभावना है कि इसके दूरगामी प्रभाव होंगे l उपभोक्ताओं के लिए ये देखने वाली बात हैं की मूल्यों पर जीएसटी का क्या असर पड़ेगा l चूंकि ज़रुरत की ज्यादातर वस्तुओं पर पहले की तुलना में कुल कर या तो समान होगा या फिर कम होगा, साथ ही इनपुट टैक्स क्रेडिट की वजह से भी लागत कम होंगे, और इनके अलावा वस्तुओं के परिवहन में भी काफी सुधार की उम्मीद है - इन बदलावों के कारण मूल्य कम होने चाहिए l लेकिन वही दूसरी तरफ सेवाओं पर कर बढ़ोतरी एवं जीएसटी के अनुपालन के बढ़े लागत से, खासकर के छोटे एवं मध्यम वर्ग के व्यवसायियों के लिए, यह संभव हैं की मूल्य बढ़ सकते है l अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि इन दोनों विपरीत प्रभावों में से कौन ज्यादा कारगर साबित होता हैं l

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